शनिवार, 26 दिसंबर 2009

बे तहासा

जब करते थे हम उनसे बेतहा सा मोहब्बत
तब उनको हमारी मोहब्बत पर सक था /
जब समझ मै आई उनको मेरी मोहब्बत /
तब मुझ पर किसी और का हक था //

तुम क्या जानो .....

तुम क्या जानो क्या होती है
तन्हाई /
एक टूटे हुए पत्ते से पूछो
क्या होती है जुदाई /
यु बेवफाई का इल्जाम न दे दोस्त
इस वक़्त से पूछ किस वक़्त
तेरी याद न आई //

दूरिया,,,,,,,,,,,

हर अक्स का मतलब गम नहीं होता /
दूरियों से प्यार कम नहीं होता //
वक़्त वे वक़्त होजाती है
आंखे नाम /
क्यों की यादो का कोई मौसम
नहीं होता //

क्या लिखू

उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखता,

और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता.

''ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??

मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखता.

''कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,

ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.'

'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,

वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.

''शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,

मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.

''उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!

मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.

''समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!

मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.

''पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,

ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.

''तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!

क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता...!!!"

सोमवार, 23 नवंबर 2009

समहल के रहना अपने घर में छुपे हुए गद्दारों से ///

hindustan ke gourav sachin tendulkar ko
shivsena sdyakch baltakre ke bad bcci ne bhi ,
apne dil ki bhadash nikali ,

kya aplogo ko yesa nahi lagta hai ki
talivan or pakistaan jise ham aatankki mulk mante hai ,
us mai kahi had tak balki usse bhi jyada
aatank maharastra mai hai ,
jo ek hi parivar ke do log alag alag muddo per kisi ko bhi
or kahi kuch bhi kar sakte hai/
aap log to samaj hi gaye ki mah shree Balasahib thakre ki hi baat kar raha hu
ye jati vaad ke thekedar kuch bhi karte rehte hai
our sarkaar apne mukh per ugly rakhe dekhti rehti hai
thakre ji orou ko to gyan sikhate hai per unki samj mai nahi aata ki
kamse kam is umar mai to logo ko paresan karna band kardo ab to aap kabhi bhi malik ke pass ja sakte ho
use kya jabab doge ki mane logo ka sukh chain sab kuch jee bhrke ccheena hai

ek khabat hai
ouro ko nashihat or khud ko fzihat

eshahi thakre sahab nka hall hai
or bcci kya kare bichre

mathura mai rahoge to radhe-radhe kahoge

nahi to fir
pitoge kyo ki maharastra ka to andha kanoon hai

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

तमन्ना


दिल से दिल की दूरी नही होती /

काश कोई मजबूरी नही होती /


आप से अभी मिलने की तमन्ना हे /

पर कहते है हर तमन्ना पूरी नही होती //

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

संपन्न करें

परिणाम
हाँ , ना , नाही , पतानही

संपन्न करें

मेरी असलियत ???



अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....सबको प्यार देने की आदत है हमें,अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,कितना भी गहरा जख्म दे कोई,उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ आसमाँ से ऊपर....एक उड़ान की 'ख़्वाहिश' है..!!जहाँ हो हर क़दम सितारों पर....उस ज़मीन की 'ख़्वाहिश' है..!!जहाँ पहचान हो मेरे वजूद की....उस नाम की 'ख़्वाहिश' है..!!जहाँ खुदा भी आके मुझसे पूँछे...."बता, क्या लिखूं तेरे मुक्क़दर में..?"उस मुकाम की 'ख़्वाहिश' है..!!उस मुकाम की 'ख़्वाहिश' है......

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

Ek din “JINDAGI” us mukam par pahoch jayegi,DOSTI to sirf yaadon main reh jayegi…।Har cup coffee YAAD doston ki dilayegi,Aur haste haste “AANKH” nam ho jayegi…।Office ke “CHAMBER” main classroom nazar aayenge,Par chahne par bhi “PROXY” nahi lag payegi…।PAISA to bahot hoga sab ke pass,Par LUTANE ki wajah kho jayegi…।Ji le iss pal ko khulke mere YAAR,Kyon ki “ Jindagi Iss Pal Ko Firse Nahi DOHRAYEGI

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

यादे .....................

हिचकियों से एक बात का पता चलता हैकि कोई हमे याद तो करता हैबात न करे तो क्या हुआकोई आज भी हम पर कुछ लम्हे बरबाद तो करता हैज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होतीहर बात समझाने के लिए नही होतीयाद तो अक्सर आती है आप कीलकिन हर याद जताने के लिए नही होतीमहफिल न सही तन्हाई तो मिलती हैमिलन न सही जुदाई तो मिलती हैकौन कहता है मोहब्बत में कुछ नही मिलतावफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती हकितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती हैप्यास भुजती नही बरसात गुज़र जाती हैअपनी यादों से कह दो कि यहाँ न आया करेनींद आती नही और रात गुज़र जाती हैउमर की राह मे रस्ते बदल जाते हैंवक्त की आंधी में इन्सान बदल जाते हैंसोचते हैं तुम्हें इतना याद न करेंलेकिन आंखें बंद करते ही इरादे बदल जाते हैंकभी कभी दिल उदास होता हैहल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता हैछलकती है मेरी भी आँखों से नमी

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

पत्थर दिल ........की ..........सच्चाई..........

रेत पर नाम लिखते नही /
रेत पर लिखे नाम टिकते नही //
लोग कहते है मुझे पत्थर दिल /
पत्थरो पर लिखे नाम मिटते नही//

मोहब्बत .........का ...हस्र .........

ये खुदा तू कभी इश्कमत करना /
बहुत पछतायेगा /
हम तो मरकर तेरे पास आते है /
सोच तू किधर जाएगा //

दिल से .................दिल तक .........

तुम क्या जानो क्या होती है तन्हाई /
एक टूटे हुए पत्ते से पूछोक्या होती है जुदाई /
यू बेबफाई का इल्जाम न दे दोस्त /
इस बक्त से पूछ बक्त तेरी याद न आई //

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

एक डिजायनर की कल्पना

रंगने वाले तो राग से तस्बीर बदल देते है /
कमान से निकला हुआ तीर बदल देते है //
तुमसे मेरे आंसू न बदले गए /
बदलने बाले तो तकदीर बदल देते है //



(अनिरुद्ध प्रताप सिंह दिल्ली )

उनकी यादे

उनकी यादो को दिल से भुला सकते नही /

दिल की बेताबी है की सूरत दिखा सकते नही /

बड़ी ही दिलचस्प है मोहब्बत की मजबुरिया /

सामने मंजिल है पर कदम बड़ा सकते नही //

(अनिरुद्ध प्रताप सिंह दिल्ली )

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

शक और प्यार दोनों एक दुसरे के दुसमन है

जब हम करते थे उनसे बे तहासा मोहब्बत /

तब उनको मेरी मोहब्बत पर शक था /

जब उनको समज में आई मेरी मोहब्बत /

तब हमपर किसी और का hak था /





= आप का अनिरुद्ग प्रताप सिंह (दिल्ली )

दुरिया और प्यार

हर अक्स का मतलब गम नही होता /

दूरियों से प्यार कम नही होता /

बक्त वे बक्त होजाती है आँखे नम /

क्यो की यादो का कोई मौसम नही होता /




अनिरुद्ध प्रताप सिंह (दिल्ली )